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बाजरे की खेती

बाजरा के प्रमुख उत्पादक राजस्थान के लिए FICCI और कोर्टेवा एग्रीसाइंस ने मिलेट रोडमैप कार्यक्रम का आयोजन किया

बाजरा के प्रमुख उत्पादक राजस्थान के लिए FICCI और कोर्टेवा एग्रीसाइंस ने मिलेट रोडमैप कार्यक्रम का आयोजन किया

हाल ही में राजस्थान के जयपुर में FICCI और कॉर्टेवा एग्रीसाइंस द्वारा राजस्थान सरकार के लिए मिलेट रोडमैप कार्यक्रम आयोजित किया। जिसका प्रमुख उद्देश्य बाजरा की पैदावार में राजस्थान की शक्ति का भारतभर में प्रदर्शन करना है। फिक्की द्वारा कोर्टेवा एग्रीसाइंस के साथ साझेदारी में 19 मई 2023, शुक्रवार के दिन जयपुर में मिलेट कॉन्क्लेव - 'लीवरेजिंग राजस्थान मिलेट हेरिटेज' का आयोजन हुआ। दरअसल, इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य बाजरा की पैदावार में राजस्थान की शक्ति को प्रदर्शित करना है। विभिन्न हितधारकों के मध्य एक सार्थक संवाद को प्रोत्साहन देना है। जिससे कि राजस्थान को बाजरा हेतु एक प्रमुख केंद्र के तौर पर स्थापित करने के लिए एक भविष्य का रोडमैप तैयार किया जा सके। इसी संबंध में टास्क फोर्स के अध्यक्ष के तौर पर कॉर्टेवा एग्रीसाइंस बाजरा क्षेत्र की उन्नति व प्रगति में तेजी लाने हेतु राजस्थान सरकार द्वारा बाजरा रोडमैप कवायद का नेतृत्व किया जाएगा।

इन संस्थानों एवं समूहों ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया

कॉन्क्लेव में कृषि व्यवसाय आतिथ्य एवं पर्यटन, नीति निर्माताओं, प्रसिद्ध शोध संस्थानों के प्रगतिशील किसानों, प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। पैनलिस्टों ने बाजरा मूल्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण समस्याओं का निराकरण करने एवं एक प्रभावशाली हिस्सेदारी को उत्प्रेरित करने के लिए एक समग्र और बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने पर विचार-विमर्श किया। चर्चा में उन फायदों और संभावनाओं की व्यापक समझ उत्पन्न करने पर भी चर्चा की गई। जो कि बाजरा टिकाऊ पर्यटन और स्थानीय समुदायों की आजीविका दोनों को प्रदान कर सकता है। ये भी देखें: IYoM: भारत की पहल पर सुपर फूड बनकर खेत-बाजार-थाली में लौटा बाजरा-ज्वार

श्रेया गुहा ने मिलेट्स के सन्दर्भ में अपने विचार व्यक्त किए

श्रेया गुहा, प्रधान सचिव, राजस्थान सरकार का कहना है, कि राजस्थान को प्रत्येक क्षेत्र में बाजरे की अपनी विविध रेंज के साथ, एक पाक गंतव्य के तौर पर प्रचारित किया जाना चाहिए। पर्यटन उद्योग में बाजरा का फायदा उठाने का बेहतरीन अवसर है। इस दौरान आगे उन्होंने कहा, "स्टार्टअप और उद्यमियों के लिए बाजरा का उपयोग करके विशेष रूप से बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को लक्षित करके नवीन व्यंजनों और उत्पादों को विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं। बाजरा दीर्घकाल से राजस्थान के पारंपरिक आहार का एक अभिन्न भाग रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं राजस्थान 'बाजरा' का प्रमुख उत्पादक राज्य है। बाजरा को पानी और जमीन सहित कम संसाधनों की जरूरत पड़ती है। जिससे वह भारत के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद उत्पाद बन जाता है। जितेंद्र जोशी, चेयरमैन, फिक्की टास्क फोर्स ऑन मिलेट्स एंड डायरेक्टर सीड्स, कोर्टेवा एग्रीसाइंस - साउथ एशिया द्वारा इस आयोजन पर टिप्पणी करते हुए कहा गया है, कि "राजस्थान, भारत के बाजरा उत्पादन में सबसे बड़ा योगदानकर्ता के रूप में, अंतरराष्ट्रीय वर्ष में बाजरा की पहल की सफलता की चाबी रखता है। आज के मिलेट कॉन्क्लेव ने राजस्थान की बाजरा मूल्य श्रृंखला को आगे बढ़ाने के रोडमैप पर बातचीत करने के लिए विभिन्न हितधारकों के लिए एक मंच के तौर पर कार्य किया है। यह व्यापक दृष्टिकोण राज्य के बाजरा उद्योग हेतु न सिर्फ स्थानीय बल्कि भारतभर में बड़े अच्छे अवसर उत्पन्न करेगा। इसके लिए बाजरा सबसे अच्छा माना गया है।

वर्षा पर निर्भर इलाकों के लिए कैसी जलवायु होनी चाहिए

दरअसल, लचीली फसल, किसानों की आमदनी में बढ़ोत्तरी और संपूर्ण भारत के लिए पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराते हुए टिकाऊ कृषि का समर्थन करना। इसके अतिरिक्त बाजरा कृषि व्यवसायों हेतु नवीन आर्थिक संभावनाओं के दरवाजे खोलता है। कोर्टेवा इस वजह हेतु गहराई से प्रतिबद्ध है और हमारे व्यापक शोध के जरिए से राजस्थान में जमीनी कोशिशों के साथ, हम किसानों के लिए मूल्य जोड़ना सुचारू रखते हैं। उनकी सफलता के लिए अपने समर्पण पर अड़िग रहेंगे। ये भी देखें: भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र बाजरा मूल्य श्रृंखला में कॉर्टेवा की कोशिशों में संकर बाजरा बीजों की पेशकश शम्मिलित है, जो उनके वर्तमानित तनाव प्रतिरोध को बढ़ाते हैं। साथ ही, 15-20% अधिक पैदावार प्रदान करते हैं। साथ ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रदान करते हैं एवं अंततः किसान उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाते हैं। जयपुर में कोर्टेवा का इंडिया रिसर्च सेंटर बरसाती बाजरा, ग्रीष्म बाजरा और सरसों के प्रजनन कार्यक्रम आयोजित करता है। "प्रवक्ता" जैसे भागीदार कार्यक्रम के साथ कोर्टेवा का उद्देश्य किसानों को सभी फसल प्रबंधन रणनीतियों, नए संकरों में प्रशिक्षित और शिक्षित करने के लिए प्रेरित करना है। उनको एक सुनहरे भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाले बाकी किसान भाइयों को प्रशिक्षित करने में सहयोग करने हेतु राजदूत के रूप में शक्तिशाली बनाना है। इसके अतिरिक्त राज्य भर में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय बाजरा महोत्सव का उद्देश्य उत्पादकों और उपभोक्ताओं को बाजरा के पारिस्थितिक फायदे एवं पोषण मूल्य पर बल देना है। कंपनी बाजरा किसानों को प्रौद्योगिकी-संचालित निराकरणों के इस्तेमाल के विषय में शिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करना बरकरार रखे हुए हैं, जो उन्हें पैदावार, उत्पादकता और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ाने में सशक्त बनाता है।

कॉर्टेवा एग्रीसाइंस कृषि क्षेत्र में क्या भूमिका अदा करती है

कॉर्टेवा एग्रीसाइंस (NYSE: CTVA) एक सार्वजनिक तौर पर व्यवसाय करने वाली, वैश्विक प्योर-प्ले कृषि कंपनी है, जो विश्व की सर्वाधिक कृषि चुनौतियों के लिए फायदेमंद तौर पर समाधान प्रदान करने हेतु उद्योग-अग्रणी नवाचार, उच्च-स्पर्श ग्राहक जुड़ाव एवं परिचालन निष्पादन को जोड़ती है। Corteva अपने संतुलित और विश्व स्तर पर बीज, फसल संरक्षण, डिजिटल उत्पादों और सेवाओं के विविध मिश्रण समेत अपनी अद्वितीय वितरण रणनीति के जरिए से लाभप्रद बाजार वरीयता पैदा करता है। कृषि जगत में कुछ सर्वाधिक मान्यता प्राप्त ब्रांडों एवं विकास को गति देने के लिए बेहतर ढ़ंग से स्थापित एक प्रौद्योगिकी पाइपलाइन सहित कंपनी पूरे खाद्य प्रणाली में हितधारकों के साथ कार्य करते हुए किसानों के लिए उत्पादकता को ज्यादा से ज्यादा करने के लिए प्रतिबद्ध है। क्योंकि, यह उत्पादन करने वालों के जीवन को बेहतर करने के अपने वादे को पूर्ण करती है। साथ ही, जो उपभोग करते हैं, आने वाली पीढ़ियों के लिए उन्नति एवं विकास सुनिश्चित करते हैं। इससे संबंधित ज्यादा जानकारी के लिए आप www.corteva.com पर भी विजिट कर सकते हैं।
बाजरे की खेती (Bajra Farming information in hindi)

बाजरे की खेती (Bajra Farming information in hindi)

दोस्तों आज हम बात करेंगे, बाजरा के टॉपिक पर बाजरा जो सभी फसलों में प्रमुख माना जाता है। किसानों को बाजरे की फसल से काफी अच्छा मुनाफा होता है। बाजरे से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे:

बाजरा की खेती:

बाजरा भारत की सबसे ज्यादा उत्पादन वाली फसल है। इसीलिए भारत देश में बाजरे को अग्रणी फसलों की श्रेणी में रखा जाता है।भारत देश में करीब 85 लाख से अधिक क्षेत्रों में बाजरे की खेती की जाती है। बाजरे का उत्पादन करने वाले राज्य कुछ इस प्रकार है जहां बाजरे की खेती की जाती है। जैसे, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा राज्यों में भारी मात्रा में बाजरे का उत्पादन होता है।

बाजरा में मौजूद पोषक तत्व:

बाजरे में विभिन्न विभिन्न प्रकार के आवश्यक तत्व मौजूद होते हैं इसीलिए इसे आहार का मुख्य साधन माना जाता है। किसानों के अनुसार भारत देश में शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में इस फसल को प्रमुख खाद्य भी कहा जाता है। बाजरा ना सिर्फ मनुष्य अपितु पशुओं के भी पौष्टिक चारे का माध्यम है। बाजरे की खेती किसान पशुओं को चारा देने के लिए भी करते हैं। बाजरा के दानों में प्रोटीन की मात्रा 10.5 से लेकर14. 5% तक मौजूद होती है। पोषक तत्व की दृष्टिकोण से देखें तो यह बहुत ही उपयोगी है।

 बाजरा में लगभग वसा 4 से 8 % होता है वहीं दूसरी ओर कार्बोहाइड्रेट खनिज तत्व कैल्शियम केरोटिन राइबोफ्लेविन, विटामिन बी तथा नायसिन और विटामिन b6 भी भरपूर मात्रा में बाजरे में मौजूद होते हैं। गेंहू और चावल के मुकाबले बाजरे में अधिक मात्रा में लौह तत्व मौजूद होते हैं। बाजरे में भरपूर मात्रा में ऊर्जा मौजूद होती है इसी कारण इसका सेवन सर्दियों में ज़्यादा करते हैं। प्रोटीन, कैल्शियम फास्फोरस, और खनिज लवण, हाइड्रोरासायनिक अम्ल, बाजरे में उपयुक्त मात्रा में पाया जाता है। 

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पूसा संस्थान की पूसा कम्पोजिट 612, पूसा कंपोजिट्स 443, पूसा कम्पोजिट 383, पूसा संकर 415, एचएचबी 67, आर एस बी 121, MH169 जैसी अनेक क्षेत्रीय किसमें देश में मौजूद हैं।

बाजरे की फसल के लिए भूमि का चयन:

बाजरे की फसल के लिए किसान सभी प्रकार की भूमि को उपयुक्त बताते हैं, परंतु बलुई दोमट मिट्टी सबसे सर्वोत्तम मानी जाती है। बाजरे की फसल के लिए जल निकास की व्यवस्था को उचित बनाए रखना आवश्यक होता है। बाजरे की फसल के लिए अधिक उपजाऊ भूमि की कोई जरूरत नहीं पड़ती हैं। क्योंकि भारी भूमि कम अनुकूलित होती है।

बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु:

बाजरे की खेती के लिए गर्म जलवायु सबसे उपयोगी होती है।बाजरे की खेती 400 से 600 मिलीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से कर सकते हैं। बाजरे की खेती के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 32 से 37 सेल्सियस बेहतर माना जाता है। बाजरे की फसल का उत्पादन करने के लिए। कभी-कभी ऐसा होता है जब बाजरे पुष्पन अवस्था में हो और बारिश हो जाएगा। यह आप पानी के फव्वारों के जरिए सिंचाई कर दे। तो बाजारों के दाने धुल जाते हैं और बाजरे का उत्पादन नहीं हो पाता है। इस प्रकार बाजरे की खेती करते वक्त जलवायु का खास ख्याल रखें। 

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बाजरे की फ़सल के लिए (फसल चक्र की व्यवस्था)

बाजरे की फसल के लिए, फसल चक्र की व्यवस्था बनाना बहुत ही उपयोगी होता है। इस प्रक्रिया को अपनाने से मिट्टियों की उर्वरता बनी रहती है। यह फसल चक्र आपको एकवर्षीय बनाने की आवश्यकता होती है। या फसल चक्र कुछ इस प्रकार बनाए जाते हैं जैसे: गेहूं और जौ, बाजरा सरसों और तारामीरा, या फिर बाजरा चना, मटर या मसूर, बाजरा गेहूं, सरसों, ज्वार, मक्का चारे के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तथा बाजरा, सरसों ग्रीष्मकालीन, मूंग आदि फसल चक्र बनाए जाते हैं।

बाजरे की फसल के लिए खेत को तैयार करें:

बाजरे की फसल को बोते समय खेत को भली प्रकार से तैयार करने की आवश्यकता होती है। गर्मी के दिनों में खेतों को गहरी अच्छी जुताई की आवश्यकता होती है। साथ ही साथ उत्तम जल निकास की व्यवस्था खेतों में बनाना आवश्यक होता है। खेत जोतने के बाद, खेतों को अच्छी तरह से समतल कर लेना चाहिए। बाजरे की फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए हल द्वारा मिट्टी को अच्छी तरह से पलटे, दो से तीन बार जताई करें फिर उसके बाद बीज रोपण करें। बाजरे की फसल को सुरक्षित रखने के लिए तथा विभिन्न प्रकार के प्रकोप जैसे, दीमक और लट से बचाने के लिए आख़िरी जुताई के दौरान 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दर से फोरेट का इस्तेमाल कर खेतों में डाले। बाजरे की खेती के लिए शून्य जुताई विधि किसान उत्तम बताते हैं। इसके लिए आपको खेत समतल करना होता है मिट्टी को फसल के लिए अवशेषों तथा वानस्पतिक अवशेषों का आवरण बनाए रखने की आवश्यकता होती है। किसान इस प्रक्रिया को खेत के लिए सबसे लाभप्रद बताते हैं।

जानिए बाजरा की खेती से जुड़ी अहम बातें

बाजरे की फसल के लिए खरपतवार प्रबंधन करना:

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बाजरे की फसल के लिए खरपतवार प्रबंधन करना बहुत ही आवश्यक होता है। इसके लिए आपको लगभग 1 किलोग्राम एट्राजीन या पेंडिमिथालिन 500 से 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव की आवश्यकता होती है। छिड़काव की यह प्रक्रिया बुवाई के बाद या फिर अंकुरण आने से पहले करते हैं। बाजरे की फसल बुवाई के बाद लगभग 25 से 30 दिनों के बाद खुरपी या कसौला की सहायता से खरपतवार को निकालना उपयोगी होता है। 

ये भी देखें : बुवाई के बाद बाजरा की खेती की करें ऐसे देखभाल

बाजरे की फसल के लिए कीट प्रबंधन की व्यवस्था:

  • बाजरे की फसल को दीमक के प्रकोप से बचाने के लिए आपको 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से क्लोरोपाइरीफॉस की जरूरत पड़ती है। क्लोरोपाइरीफॉस का इस्तेमाल आप को जड़ों में और जब थोड़ी हल्की बारिश हो तब मिट्टियों में मिलाकर अच्छी तरह से बिखेर देना चाहिए।
  • तना मक्खी, जैसी समस्याओं और गिडारें और इल्लियां की शुरुआती अवस्था में पौधों की बढ़वार को काटकर अलग कर देना। इस अवस्था में पौधे सूख जाते हैं इस प्रकोप की रोकथाम करने के लिए आपको लगभग 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से फॉरेट 25 किलोग्राम, फ्यूराडोन, 3%और मैलाथियान, 5% 25 किलोग्राम प्रति लीटर के हिसाब से खेतों में डालना उपयोगी होता है।
  • सफेद लट बाजरे की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। इस रोग की रोकथाम करने के लिए आपको फ्यूराडॉन 3% फॉरेट 10% दानों को करीब 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बाजरे की बुवाई करते टाइम मिट्टियों में मिलाना आवश्यक होता है।

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं, कि आपको हमारा यह आर्टिकल बाजरा पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में बाजरेकीफसलसेजुड़ी सभी तरह की आवश्यक जानकारी मौजूद है। जो आपके बहुत काम आ सकती हैं। हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया तथा अन्य प्लेटफार्म पर शेयर करते रहे। धन्यवाद।

ओडिशा में आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बनी बाजरे की खेती

ओडिशा में आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बनी बाजरे की खेती

भुवनेश्वर। ओडिशा में बाजरे की खेती (Bajre ki Kheti) धीरे-धीरे आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बन रही है। मिलेट मिशन (Odisha Millets Mission) के तहत बाजरे की खेती को फिर से बड़े पैमाने पर पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रहीं हैं। इससे राज्य के आदिवासी परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार की संभावना दिखाई दे रहीं हैं।
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सरकार राज्य के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में बाजरे की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। इसके जरिए ही इन परिवारों को आर्थिक मजबूती देने की कोशिश है।

कम बारिश में अच्छी उपज देती है बाजरे की फसल

- बाजरे की फसल कम बारिश में भी अच्छी उपज देती है। इसीलिए उम्मीद जताई जा रही है कि यहां के आदिवासी परिवारों की बाजरे की खेती सबसे अधिक लाभकारी करेगी। यही कारण है कि ओडिशा के तीसरे बड़े आबादी वाले मयूरभंज जिले में महिला किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
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राज्य के 19 जिलों में बाजरे की खेती को किया जा रहा है पुनर्जीवित

- ओडिशा राज्य के 19 जिलों में बाजरा की खेती को पुनर्जीवित करने की योजना बनाई गई है। इसमें 52000 हेक्टेयर से अधिक का रकबा शामिल किया गया है। साथ ही 1.2 लाख किसानों को बाजरे की खेती से जोड़ा जा रहा है।
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महिला किसानों की भागीदारी है प्रसंशनीय

- ओडिशा में बाजरे की खेती को लेकर आदिवासियों में जबरदस्त उत्साह है। इनमें खासतौर पर महिला किसानों की भागीदारी प्रसंशनीय है। कई जगह अकेले महिलाएं ही पूरी तरह बाजरे की खेती कर रहीं हैं। वहीं कई स्थानों पर महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों संग धान की खेती में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहीं हैं। महिलाएं अपनी उपज को अच्छे भाव में बाजार में बेच रहीं हैं।

मिशन मिलेट्स के तहत खेती को मिल रहा है बढ़ावा

- राज्य में मिशन मिलेट्स के तहत बाजरे की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें सरकार भी किसानों की मदद कर रही है। किसान बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर बाजरे की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इस कार्यक्रम का शुभारंभ साल 2017 में हुआ था। इन दिनों रागी, फोक्सटेल, बरनार्ड, ज्वार, कोदो व मोती जैसी विभिन्न किस्मों की खेती की जा रही है। यही बाजरे की खेती आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बन रहा है। ----- लोकेन्द्र नरवार
बाजरे की खेती को विश्व गुरु बनाने जा रहा है भारत, प्रतिवर्ष 170 लाख टन का करता है उत्पादन

बाजरे की खेती को विश्व गुरु बनाने जा रहा है भारत, प्रतिवर्ष 170 लाख टन का करता है उत्पादन

बदलते परिवेश और खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए किसान लगातार इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि कौन सी फसल उगाएं। हालांकि, मोटे अनाज उगाना किसानों की चिंताओं को दूर करने का एक शानदार तरीका हो सकता है। मोटे अनाज की खेती, जैसे कि बाजरा (Pearl Millet), जब से संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को बाजरा वर्ष (इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM-2023)) के रूप में घोषित किया है, बाजरे की खेती और मांग दोनों बढ़ गयी है।
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
[caption id="attachment_10437" align="alignleft" width="300"]बाजरे के बीज (Bajra Seeds) बाजरे के बीज[/caption] हैदराबाद में भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान (भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान (Indian Institute of Millets Research), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत ज्वार तथा अन्य कदन्नों पर बुनियादी एवं नीतिपरक अनुसंधान में व्यस्त एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान है) के अनुसार, भारत 170 लाख टन से अधिक मोटे अनाज का उत्पादन करता है। यह एशिया के 80 प्रतिशत और वैश्विक उत्पादन का 20 प्रतिशत हिस्सा है। यह लगभग 131 देशों में उगाया जाता है और 600 मिलियन एशियाई और अफ्रीकी लोगों इसको भोजन के रूप मे उपयोग करते है । [caption id="attachment_10434" align="alignright" width="188"]बाजरा (Bajra) बाजरा (Pearl Millet)[/caption] सबसे पुराने खाद्य पदार्थों में से एक बाजरा भी है, किसान कई वर्षों से मिश्रित खेती के तरीकों का उपयोग करके बाजरा उगा रहे हैं। आंध्र प्रदेश के मेडक में किसान एक ही भूखंड पर 15 से 30 विभिन्न किस्मों की फसल की खेती करते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के बाजरा, दाल और जंगली खाद्य पदार्थ शामिल हैं। हाल के वर्षों में लाखों के संख्या मे लोग इसको अपनी दैनिक आहार में अनाज के अनुपात में मोटे अनाज जैसे बाजरा के उपयोग को प्राथमिकता दे रहे हैं। लोग रोगों से निपटने के लिए स्वास्थ्य जागरूकता में वृद्धि के परिणामस्वरूप बाजरे के सेवन को एक विकल्प के रूप मे तैयार कर रहे हैं। बाजरा को 'सुपरफूड' के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, क्योंकि इनमें फाइबर और प्रोटीन जैसे मैक्रोन्यूट्रिएंट्स के साथ-साथ कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे विटामिन और खनिजों की उच्च मात्रा होती है। ज्वार, बाजरा, फिंगर बाजरा, फॉक्सटेल बाजरा आदि अनाज 'सुपरफूड' बाजरा के उदाहरण हैं। ये सुपरफूड मधुमेह, मोटापा और हृदय रोग जैसी पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोगों की मदद कर सकते हैं। यह पाचन में भी सहायता करता है और भी बहुत समस्याओं से निजात दिलाता है |

प्राचीन और पौष्टिक अनाज उत्पादन को बढ़ावा

केंद्र सरकार ने प्राचीन और पौष्टिक भारतीय अनाज के उपयोग को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। सरकार के अभियान से खेत मालिकों को लाभ होगा और खाने वालों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। 2023 के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विश्वव्यापी अनाज वर्ष घोषित किया गया है। भारत के नेतृत्व में और 70 से अधिक देशों द्वारा समर्थित संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का उपयोग इसे पारित करने के लिए किया गया था। यह बाजरा के महत्व, टिकाऊ कृषि में इसकी भूमिका और दुनिया भर में एक बढ़िया और शानदार भोजन के रूप में इसके लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करेगा। [caption id="attachment_10436" align="alignleft" width="300"]बाजरे की रोटी (Bajre ki roti) बाजरे की रोटी[/caption] 170 लाख टन से अधिक के बाजरे के उत्पादन के साथ, भारत एक वैश्विक बाजरा केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। एशिया में उत्पादित बाजरा का 80% से अधिक इस क्षेत्र में उगाया जाता है। ये अनाज भोजन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पहले पौधों में से एक थे और सिंधु सभ्यता में खोजे गए थे। यह लगभग 131 देशों में उगाया जाता है और लगभग 600 मिलियन एशियाई और अफ्रीकी लोगों का पारंपरिक भोजन है।

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भारत सरकार ने बाजरा उत्पादन और खपत को बढ़ावा देने के लिए 2018 को राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित किया।  संयुक्त राष्ट्र (United Nations) महासभा ने हाल ही में सर्वसम्मति से 2023 को "अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष" घोषित करने के लिए बांग्लादेश, केन्या, नेपाल, नाइजीरिया, रूस और सेनेगल के सहयोग से भारत द्वारा शुरू किए गए एक प्रस्ताव को अपनाया। भारत ने 2023 पालन के लिए तीन प्राथमिक लक्ष्यों की पहचान की है:

i. खाद्य सुरक्षा और पोषण में बाजरा के योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाना;

ii. बाजरे के उत्पादन, उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार की दिशा में काम करने के लिए राष्ट्रीय सरकारों सहित प्रेरक हितधारक;

iii. बाजरा अनुसंधान और विकास और विस्तार सेवाओं में निवेश में वृद्धि के लिए सुधार करना।

देश की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में मदद करने के लिए बाजरा को वर्षों से भारत की खाद्य सुरक्षा लाभ योजनाओं में शामिल किया गया है। मोटे अनाज अफ्रीका में 489 लाख हेक्टेयर भूमि पर उगाए जाते हैं, वार्षिक उत्पादन लगभग 423 लाख टन है। केंद्र सरकार के अनुसार, भारत मोटे अनाज (138 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में) का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। ऐसी स्थिति में, किसानों को मोटे अनाज की खेती के विकल्पों के बारे में पता होना चाहिए, जैसे कि बाजरा की खेती, जिसका उपयोग आर्थिक लाभ उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है।


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(Bajra Farming information in hindi)

बाजरा उत्पादन के प्रति जागरूकता

बाजरा के स्वास्थ्य लाभों को उजागर करने और जन जागरूकता बढ़ाने के लक्ष्य के साथ 5 सितंबर को 'भारत का धन, स्वास्थ्य के लिए बाजरा' विषय के साथ एक पेंटिंग प्रतियोगिता शुरू हुई। प्रतियोगिता का समापन 5 नवंबर, 2022 को होगा। अब तक, सरकार का दावा है कि उसे बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। 10 सितंबर, 2022 को बाजरा स्टार्टअप इनोवेशन चैलेंज (Millet Startup Innovation Challenge) शुरू किया गया था। millet startup innovation challenge  
"अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष 2023 के उपलक्ष में वित्त एवं कृषि मंत्री व सीएम के आतिथ्य में कॉन्क्लेव
 (Millets Conclave 2022), और मिलेट स्टार्टअप इनोवेशन चैलेंज" 
से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए,
 यहां क्लिक करें : https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1854884
https://twitter.com/nstomar/status/1563471184464715779?ref_src=twsrc%5Etfw%7Ctwcamp%5Etweetembed%7Ctwterm%5E1563471184464715779%7Ctwgr%5E256261f5a04f0ab375ae464d14642d51ee55205a%7Ctwcon%5Es1_&ref_url=https%3A%2F%2Fpib.gov.in%2FPressReleaseIframePage.aspx%3FPRID%3D1854884
"अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 की समयावधि तक कृषि मंत्रालय ने पूर्व में शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन
 और प्राचीन तथा पौष्टिक अनाज को फिर से खाने के उपयोग में लाने पर जागरूकता फैलाने की पहल" से सम्बंधित सरकारी
 प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
यह पहल युवाओं को मौजूदा बाजरा पारिस्थितिकी तंत्र की समस्याओं के लिए तकनीकी और व्यावसायिक समाधान प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह नवाचार प्रतियोगिता 31 जनवरी 2023 तक खुली रहेगी। बाजरा और इसके लाभों के बारे में प्रश्न पूछने वाले माइटी मिलेट्स क्विज (Mighty Millets Quiz) को हाल ही में लॉन्च किया गया था, और इसे जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है। क्विज का आयोजन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया जा रहा है, क्विज में प्रवेश करने के इच्छुक प्रतिभागी यहाँ क्लिक करें। यह प्रतियोगिता 20 अक्टूबर 2022 को समाप्त होगी, इससे लोगों की बाजरे और मोटे अनाज के बारे में समझ बढ़ेगी। Mighty Millets Quiz बाजरे के महत्व के बारे में एक ऑडियो गीत और वृत्तचित्र फिल्म के लिए एक प्रतियोगिता भी जल्द ही शुरू की जाएगी। अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 लोगो और स्लोगन प्रतियोगिता पहले ही शुरू हो चुकी है। विजेताओं की घोषणा शीघ्र ही की जाएगी। भारत सरकार जल्द ही ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 के उपलक्ष्य में लोगो ( Logo ) और नारा जारी करेगी। लक्ष्य मोटे अनाज को किसी भी तरह से लोकप्रिय बनाना है।


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वेदों में भी बाजरा उत्पादन का चर्चा

यजुर्वेद में बाजरे के उपयोग के साक्ष्य मिले है। बाजरे की खेती से किसानों को काफी लाभ हो सकता है। बाजरा या मोटा अनाज भी आपकी सेहत के लिए अच्छा होता है, इसमें बाजरा सबसे लोकप्रिय है। [caption id="attachment_10440" align="aligncenter" width="1024"]भारत का राज्यवार बाजरा नक्शा (from https://agricoop.nic.in/sites/default/files/Crops.pdf) भारत का राज्यवार बाजरा नक्शा[/caption] बाजरा कई प्रकार की किस्मों में भी आता है। प्रियंगु (लोमड़ी की पूंछ वाला बाजरा, Priyangu ), स्यामक (काली उंगली बाजरा, shyamak) और अनु (बार्नयार्ड बाजरा) ये सब बाजरे की महत्वपूर्ण किस्म है। यजुर्वेद में भी उपमहाद्वीप के कई क्षेत्रों में बाजरा के उपयोग के प्रमाण मिलते हैं। बाजरा 1500 ईसा पूर्व से बहुत पहले उगाया और खाया जाता था। मोटे अनाज खाने वालों के बीच लोकप्रिय बाजरे की किस्में रागी (मोती बाजरा), ज्वार (ज्वार उर्फ द ग्रेट बाजरा), और प्रियांगु (फॉक्स टेल बाजरा) हैं।
भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत दुनिया में मोटे अनाजों (Coarse Grains) का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, इसलिए भारत इस चीज के लिए तेजी से प्रयासरत है कि दुनिया भर में मोटे अनाजों की स्वीकार्यता बढ़े। 

इसको लेकर भारत ने साल 2018 को मिलेट्स ईयर के तौर पर मनाया था और साथ ही अब साल 2023 को संयुक्त राष्ट्र संघ इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM-2023) के तौर पर मनाएगा। इसका सुझाव भी संयुक्त राष्ट्र (United Nations) संघ को भारत सरकार ने ही दिया है, जिस पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने सहमति जताई है।

इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें देश के भीतर मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने देश में तीन नए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये हैं, जो देश में मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होंगे, साथ ही ये उत्कृष्टता केंद्र देश में मोटे अनाजों के प्रति लोगों को जागरूक भी करेंगे।

  • इन तीन उत्कृष्टता केंद्रों में से पहला केंद्र बाजरा (Pearl Millet) के लिए  चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (Chaudhary Charan Singh Haryana Agricultural University, Hisar) में स्थापित किया गया है। यह केंद्र पूरी तरह से बाजरे की खेती के लिए, उसके उत्पादन के लिए तथा उसके प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है, इसके साथ ही यह केंद्र लोगों के बीच बाजरे के फायदों को लेकर जागरूक करने का प्रयास भी करेगा।
  • इसी कड़ी में सरकार ने दूसरा उत्कृष्टता केंद्र भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद (Indian Institute of Millets Research (IIMR)) में स्थापित किया है। यह केंद्र ज्वार (Jowar) की खेती को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। यह केंद्र देश भर में ज्वार की खेती के प्रति लोगों को जागरूक करेगा, साथ ही लोगों के बीच ज्वार से होने वाले फायदों को लेकर जागरूकता फैलाएगा।
  • इनके साथ ही तीसरा उत्कृष्टता केंद्र कृषि विज्ञान विश्विद्यालय, बेंगलुरु (University of Agricultural Sciences, GKVK, Bangalore) में स्थापित किया गया है। यह उत्कृष्टता केंद्र छोटे मिलेट्स जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि के उत्पादन और प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है।
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मोटे अनाजों में मुख्य तौर पर ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, फिंगर बाजरा और अन्य कुटकी जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि आते हैं, इन सभी को मिलाकर भारत में मोटा अनाज या मिलेट्स (Millets) कहते हैं। 

इन अनाजों को ज्यादातर पोषक अनाज भी कहा जाता है क्योंकि इन अनाजों में चावल और गेहूं की तुलना में 3.5 गुना अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। मोटे अनाजों में पोषक तत्वों का भंडार होता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद फायदेमंद होते हैं। 

मिलेटस में मुख्य तौर पर बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि खनिजों के साथ विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। 

इन अनाजों का सेवन लोगों के लिए बेहद फायदेमंद होता है, इनका सेवन करने वाले लोगों को कब्ज और अपच की परेशानी होने की संभावना न के बराबर होती है। 

ये अनाज बेहद चमत्कारिक हैं क्योंकि ये अनाज विपरीत परिस्तिथियों में भी आसानी से उग सकते हैं, इनके उत्पादन के लिए पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है। 

साथ ही प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन का भी इन अनाजों पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ता, इसलिए इनका उत्पादन भी ज्यादा होता है और इन अनाजों का उत्पादन करने से प्रकृति को भी ज्यादा नुकसान नहीं होता। 

आज के युग में जब पानी लगातार काम होता जा रहा है और भूमिगत जल नीचे की ओर जा रहा है ऐसे में मोटे अनाजों का उत्पादन एक बेहतर विकल्प हो सकता है क्योंकि इनके उत्पादन में चावल और गेहूं जितना पानी इस्तेमाल नहीं होता। 

यह अनाज कम पानी में भी उगाये जा सकते हैं जो पर्यावरण के लिए बेहद अनुकूल हैं। मोटे अनाजों का उपयोग मानव अपने खाने के साथ-साथ जानवरों के खाने के लिए भी कर सकता है, इन अनाजों का उपयोग भोजन के साथ-साथ, पशुओं के लिए और पक्षियों के चारे के रूप में भी किया जाता है। ये अनाज हाई पौष्टिक मूल्यों वाले होते हैं जो कुपोषण से लड़ने में सहायक होते हैं।

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मोटे अनाजों का उत्पादन देश में कर्नाटक, राजस्थान, पुद्दुचेरी, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों में ज्यादा किया जाता है, क्योंकि यहां की जलवायु मोटे अनाजों के उत्पादन के लिए अनुकूल है और इन राज्यों में मिलेट्स को आसानी से उगाया जा सकता है, 

इसके साथ ही इन राज्यों के लोग अब भी मोटे अनाजों के प्रति लगाव रखते हैं और अपनी दिनचर्या में इन अनाजों को स्थान देते हैं। इसके अलावा इन अनाजों का एक बहुत बड़ा उद्देश्य पशुओं के लिए चारे की आपूर्ति करना है। मोटे अनाजों के पेड़ों का उपयोग कई राज्यों में पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है, 

इनके पेड़ों को मशीन से काटकर पशुओं को खिलाया जाता है, इस मामले में हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश टॉप पर हैं, जहां मोटे अनाजों का इस उद्देश्य की आपूर्ति के लिए बहुतायत में उत्पादन किया जाता है। 

मोटे अनाजों के कई गुणों को देखते हुए सरकार लगतार इसके उत्पादन में वृद्धि करने का प्रयास कर रही है। जहां साल 2021 में 16.93 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई थी, 

वहीं इस साल देश में 17.63 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई है। अगर वर्तमान आंकड़ों की बात करें तो देश में हर साल 50 मिलियन टन से ज्यादा मिलेट्स का उत्पादन किया जाता है।

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इन मोटे अनाजों में मक्के और बाजरे का शेयर सबसे ज्यादा है। ज्यादा से ज्यादा किसान मोटे अनाजों की खेती की तरफ आकर्षित हों इसके लिए सरकार ने लगभग हर साल मोटे अनाजों के सरकारी समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की है। इन अनाजों को सरकार अब अच्छे खासे समर्थन मूल्य के साथ खरीदती है। 

जिससे किसानों को भी इस खेती में लाभ होता है। बीते कुछ सालों में इन अनाजों के प्रचलन का ग्राफ तेजी से गिरा है। आजादी के पहले देश में ज्यादातर लोग मोटे अनाजों का ही उपयोग करते थे, लेकिन अब लोगों के खाना खाने का तरीका बदल रहा है, 

जिसके कारण लोगों की जीवनशैली प्रभावित हो रही है और लोगों को मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां तेजी से घेर रही हैं। इन बीमारियों की रोकथाम के लिए लोगों को अपनी थाली में मोटे अनाजों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, जिसके लिए सरकार लगातार प्रयासरत है। 

मोटे अनाजों के फायदों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें 'सुपरफूड' बताया है। अब पीएम मोदी दुनिया भर में इन अनाजों के प्रचार के लिए ब्रांड एंबेसडर बने हुए हैं। 

"अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 की समयावधि तक कृषि मंत्रालय ने पूर्व में शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन और प्राचीन तथा पौष्टिक अनाज को फिर से खाने के उपयोग में लाने पर जागरूकता फैलाने की पहल" से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें । 

पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित हुए शंघाई सहयोग संगठन की बैठक को सम्बोधित करते हुए मोटे अनाजों को 'सुपरफूड' बताया था। 

उन्होंने अपने सम्बोधन में इन अनाजों से होने वाले फायदों के बारे में भी बताया था। पीएम मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन के विभिन्न नेताओं के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेट्स फूड फेस्टिवल के आयोजन की वकालत की थी। 

उन्होंने बताया था की इन अनाजों के उत्पादन के लिए कितनी कम मेहनत और पानी की जरुरत होती है। इन चीजों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार लगातार मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए और प्रचारित करने के लिए प्रयासरत है।

देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए है इस फसल की खेती जरूरी विदेश मंत्री ने कहा

देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए है इस फसल की खेती जरूरी विदेश मंत्री ने कहा

वर्ष 2023 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया गया है। केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की मानें तो संयुक्त राष्ट्र ने यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर लिया है। हाल ही में केंद्रीय कृषि और कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और विदेश मंत्री डॉक्टर सुब्रह्मण्यम जयशंकर की अध्यक्षता में अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के प्रीलॉन्च के उत्सव को मनाया गया। इसमें मिलेट के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के बारे में बात की गई है।


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विदेश मंत्री के अनुसार मिलेट (MILLET) की खेती करने से ना सिर्फ देश आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि इससे वैश्विक खाद्य समस्या का जोखिम भी कम होगा। इसके अलावा अगर किसानों के दृष्टिकोण से देखा जाए तो ये किसानों को आत्मनिर्भर बनाएगा और विकेंद्रीकरण उत्पादन में भी इससे फायदा होगा।

क्या है मिलेट और क्यों बढ़ रही है वैश्विक बाजार में मांग

मिलेट (MILLETS) को जिस नाम से हम जानते हैं, वह है बाजरा। जी हां छोटे छोटे दाने वाला यह अनाज आजकल बहुत लोकप्रिय हो रहा है। ऐसे में सोचने वाली बात है, कि मिलेट के अचानक से लोकप्रिय होने का कारण क्या है। कोविड-19 के दौरान वैश्विक खाद संकट एक बार फिर से सामने आ गया था, और ऐसे में बाजरा एक ऐसा अनाज है, जो कम पानी और विषम परिस्थितियों में भी उगाया जा सकता है। इसके अलावा कोविड-19 से लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर भी काफी सजग हो गए हैं, और बाजरे को हमेशा से ही स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है। इसीलिए जिस तरह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है उस को ध्यान में रखते हुए कुछ इस तरह की ही खेती की ओर हमें ध्यान देना चाहिए ताकि हम देश और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य सुरक्षा के बारे में पहल कर सकें।


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क्या है मिलेट के पोषक तत्व

मिलेट में पाए जाने वाले पोषक तत्व के बारे में बात की जाए तो लिस्ट काफी लंबी है, इसमें आपको भरपूर मात्रा में फाइबर, कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम, विटामिन बी-6 और केराटिन भी पाया जाता है।

क्या गुण बनाते हैं मिलेट को खास

पहले से ही मिलेट को कई अलग-अलग तरह के नामों से जाना जाता है, इसे ‘भविष्य की फसल’ या फिर ‘चमत्कारी अनाज’ भी कहा गया है। उसका कारण है कि मिलेट में पोषक तत्व तो होते ही हैं साथ ही विषम परिस्थितियों और कम लागत में भी उससे उत्पादन होने के कारण इसे खास माना गया है। अगर किसी किसान के पास सिंचाई आदि की सुविधाएं नहीं है, तब भी वह मिलेट की खेती कर सकता है।

पर्यावरण के लिए भी है चमत्कारी

जैसा कि बताया जा चुका है, कि मिलेट की खेती में पानी तो कम लगता ही है साथ ही इसकी खेती में कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है। जो सुरक्षित वातावरण बनाए रखने के लिए लाभकारी है। यही कारण है कि भारत में बहुत से राज्य एक से अधिक मिलेट की नस्लों का उत्पादन करते हैं।

इससे जुड़े स्टार्टअप को दी जा रही है आर्थिक सहायता

इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए जो भी स्टार्टअप काम कर रहे हैं, उनको सरकार की तरफ से सहायता भी दी जा रही है। आंकड़ों की मानें तो लगभग 500 से ज्यादा स्टार्टअप इसके उत्पादन के लिए काम कर रहे हैं, जिनमें से 250 स्टार्टअप को भारतीय मिलेट अनुसंधान की तरफ से चयनित किया गया है। उसमें से 70 के करीब स्टार्टअप्स को 6 करोड़ से ज्यादा का इन्वेस्टमेंट दिया जा चुका है।


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पिछले काफी सालों से यह अनाज लोगों की थाली से गायब रहा था और इसका असर आजकल लोगों के स्वास्थ्य पर सीधे तौर पर देखा जा सकता है। अब धीरे ही सही लेकिन लोगों का ध्यान इसकी ओर फिर से आकर्षित हो रहा है।